Dear Anne Frank,
तुम्हारे साथ चार महीने का यह सफर आज पूरा हुआ। पिछले 4 महीनों से तुम मेरी आंखों के सामने थी। अपनी डायरी के रूप में।
बीच के दो महीने, मैं बस तुम्हारी डायरी को देखती रहती थी। सोचती थी कि बैठ कर आराम से तुमसे तुम्हारी कहानी सुनुंगी। लेकिन अपनी ही उलझनों में उलझी रही। तुम्हारी डायरी पढ़ते हुए बहुत कुछ महसूस किया।
कभी मुस्कुराहट चेहरे पर आयी तो कई बार आंखों में आसूं आये। और कल जब बस आखिरी पन्ना रह गया था तुम्हारी डायरी का, तब मैं इस तरह रोयी जैसे मैंने किसी बहुत करीबी को खो दिया हो।
मैं तुम्हें जिंदगी जीते हुए देखना चाहती थी। तुम्हारे वो ख्वाब जो तुमने अंत तक देखे थे उन्हें पूरा होते हुए देखना चाहती थी। तुम्हें जानने के बाद मौत और जिंदगी को और अच्छे से समझने लगी हूं। आखिरी सांस तक भी उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए एक बेहतर जीवन की ये तुमसे मिलकर जाना।
एनी, सच कहूं तो ऐसा लगता है जैसे मुझमें भी कहीं तुम हो। और कहीं थोड़ा पीटर भी 🙂 14 साल की वो लड़की जो अपनों के बीच रहकर भी अकेली महसूस करती थी, वो लड़की जो खुद को कम समझे जाने पर कभी दुखी होती थी तो कभी अपनी एक अलग दुनिया बनाने में मशगूल थी, मेरे ही नहीं शायद हर एक लड़की के अंदर है।
तुम शायद हर किसी के अंदर हो एनी। किसी न किसी रूप में। कहीं थोड़ी कम, कहीं थोड़ी ज्यादा।
एनी, तुमसे मिलने की ये जो तीव्र इच्छा मेरे मन में गहराती जा रही है, काश ये पूरी हो पाती। मैं तुम्हें अपनी आंखों से मुस्कुराते हुए देखना चाहती हूं। मैं तुम्हें युद्ध के बाद फिर से स्कूल जाते देखना चाहती थी।
मैं तुम्हें आजादी से सांस लेते हुए देखना चाहती थी। खुली हवा में प्रकृति को महसूस करते देखना चाहती थी। भरपेट खाना खाते देखना चाहती थी।
काश ! तुम एक लंबी जिंदगी जी पाती। आई मिस यू एनी, आई रियली मिस यू Dearest Anne Frank ।
0 Comments