मैं दर-ब-दर भटकता रहा। न दिन न रात, न शाम न सुबह, कोई पल ऐसा नहीं था जब तुम याद न रहे हो मुझको। मैंने अपने भीतर खुद से ज्यादा तुम्हें जिया है। तुम्हें महसूस किया है उन लम्हों में जब खुद से भी मेरा राब्ता टूट सा गया था।
मेरा दावा नहीं है कि मौहब्बत थी मुझको। बस कुछ ऐसा था जो मुझे तुमसे कभी अलग नहीं कर पाया। मैं चाह कर भी तुमसे दूर नहीं हो पाया।
मैंने कई खत लिखे। कभी तुम्हें, कभी खुद को। कभी तुमसे इजहार-ए-इश्क में। कभी खुद को खुद से नाराजगी में। मेरे अंदर भावनाओं का ये समंदर कभी किनारों को तोड़ देता है और कभी इतना शांत हो जाता है कि लगता है कि दिल पत्थर हो गया हो।
खैर, तुम्हारे इनबॉक्स में मेरा आखिरी मैसेज मेरी उस आखिरी कोशिश की तुम्हें हमेशा याद दिलाएगा जो मैंने इस उम्मीद में की थी कि शायद कहीं कुछ बचा है हमारे बीच जिसे ठीक किया जा सकता है।
मगर आज वो कोशिश, वो उम्मीद भी टूट गयी। आज मैं तुम्हें हमेशा के लिए खुद से आजाद करता हूं। मैंने ये सच स्वीकार कर लिया है कि अब कभी कुछ ठीक नहीं होगा और न ही हम कभी साथ हो पायेंगे।
मुझे अब ये बची हुई जिंदगी बिना किसी दर्द के जीनी है। मैं आज खुद को हर इंतजार, हर एहसास, हर उम्मीद और हर दर्द से आजाद करता हूं। मैं आज खुद को प्यार से आजाद करता हूं।
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